केशकाल के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल टाटामारी को ईको पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित करने का प्रयास
ब्यूरो रिपोर्ट राजेश प्रसाद
जहां अब धीरे-धीरे खरगोश,वनमुर्गी, चीतल /सांभर, लकड़बग्घा एवं दूसरे प्रजाति के वन्य प्रांणी अपना बसेरा बनाने लगे हैं जो पर्यटन विकास के दृष्टि से शुभ संकेत हैं।लोग टाटामारी को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किये जाने की मुराद और मांग कर रहे हैं । वंही दूसरी तरफ वंहा पर देवी - देवता ,पूजा पाठ का आड लेकर मायाजाल बढ़ाते लगातार क्षेत्र विस्तार करते अतिक्रमंण बढ़ाया जा रहा है और धीरे धीरे मानव आबादी क्षेत्र बनाने की कोशिश किया जा रहा है। केशकाल क्षेत्र ही नहीं पूरे बस्तर संभाग में अधिकतर देवी देवता स्थल एवं प्राचिन पुरातात्विक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल वन क्षेत्र में ही हैं ज़हां पर लोगों को अगाध आस्था है और लोग वंहा पूजा पाठ करने आते जाते रहते हैं ।परन्तु कंही पर भी मुख्य देवी देवता के अलावा और अन्य देवी देवता पूजा पाठ के नाम पर सटे हुए आसपास के वनक्षेत्र में क्षेत्र विस्तार नहीं किया जाता। केशकाल घाटी में मां तेलीनसत्ती ,घाटी के उपर मां भंगाराम देवी का मंदिर ,गढ्धनौरा गोबरहीन में शिवलिंग है जंहा पुरातनकाल से पूजा पाठ होते आ रहा है पर कभी भी किसी ने आसपास के वनक्षेत्र में और देवी देवता होने के नाम पर क्षेत्र विस्तार नहीं किया।
टाटामारी में मां लक्ष्मी शक्तिपीठ होने की जानकारी स्थानिय बुजुर्गों को एवं यंहा के ग्राम प्रमुखों सिरहा गुनिया पुजारियों को नहीं हो पायी थी। यंहा पर खंण्ड शिक्षा कार्यालय में बाबू के तौर पर पदस्थ होने वाले श्री ठाकुर बाबू को अचानक इसका बोध हुआ और उसके बाद से ही टाटामारी में लक्ष्मी मां का शक्तिपीठ होने की जानकारी प्रचारीत हुआ ।टाटामारी की ही भांति और कयी स्थानों पर देवी देवता स्थल होने का खोज व शोध करने वाले महान भक्त एवं विद्वान पुजारी श्री ठाकुर बाबू ने ही टाटामारी में लक्ष्मी माता का वास होने का खोज किया। जिसके बाद वंहा पर पूजा पाठ एवं विभिन्न आयोजन शुरू हो गया। मां लक्ष्मी का शक्तिपीठ होने की जानकारी के पूर्व टाटामारी निर्जन वन क्षेत्र था जंहा जाना आना बहुत मुश्किल भरा होता था आसपास के लोग कभी कभार कुर्रू मोकय्या तेंदू खाने के चक्कर में जाते थे। श्री ठाकुर बाबू के द्वारा लक्ष्मी माता के नाम और स्थान के चमत्कार के नाम से जो यश किर्ति फैलाया गया उसके चलते लोगों का आवाजाही बढ़ने लगा और पूजा पाठ का सिलसिला शुरू हो गया जो समय काल के साथ बढ़ते गया। अपने भौगौलिक विशिष्ठता एवं प्राकृतिक सौंदर्यता के चलते पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित होने के संभावना से परिपूर्ण टाटामारी को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने का सुझाव सर्व प्रथम तत्कालीन उत्तर बस्तर वनमंण्लाधिकारी श्री नंदी के समय तत्काललीन जनपद सदस्य कृष्णदत्त उपाध्याय और जनपद उपाध्यक्ष रहे सगीर अहमद कुरैशी के द्वारा रखते हुए उन्हें टाटामारी ले जाकर दिखाया गया था।परन्तु उस वक्त नंदी साहब ने उनके सुझाव /प्रस्ताव को गंभीरता से नहीं लिया था। जिसके बाद भी लिखा-पढ़ी कर टाटामारी को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने की मांग जारी रहा और अंततः प्रयास फलीभूत हुआ श्री कटकवार वनमंण्लाधिकारी बनकर आये और उन्हें टाटामारी को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने की मांग के परिपेक्ष्य में प्रस्ताव मांगा गया जिसके बाद श्री कटकवार ने टाटामारी जाकर वंहा अवलोकन किया और प्रस्ताव भेजा जिसके बाद टाटामारी के विकास का श्रीगंणेश वन विभाग द्वारा आरंभ किया गया था। इस बीच आस्था से श्रदधानत् भक्तों ने टाटामारी पंहुच मार्ग को आने जाने बनाने में अपना योगदान दिया जिसे भुलाया नहीं जा सकता। धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्यता ने टाटामारी के विकास एवं ख्याति में अहं योगदान दिया। धीरे धीरी टाटामारी बस्तर संभाग के सुंदर आकर्षक पर्यटन स्थलों की सूची में खास स्थान अर्जित कर लिया। टाटामारी में पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं हैं। पैराग्लाइडिंग -पैरासर्फिंग- ऐडवांचर गेमर्स आरंभ करते ट्रेकिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है वंही वन्य प्राणियों -पक्षियों की शरंण व संरक्षण स्थली बनाते पर्यटन चेतना केंद्र-प्रशिक्षंण केंद्र के तौर पर भी विकसित जा सकता है। जिस दिशा में प्रयास जारी भी है ।जो देर सबेर होना ही है। जिसके लिए टाटामारी क्षेत्र को सुरक्षित रखना भी निहायत जरूरी हो गया है। परन्तु पिछले कुछ दिनों से धार्मिक आस्था के नाम पर अनावश्यक बखेड़ा खड़ा करने का काम केशकाल क्षेत्र के बाहर के बाहरी लोगों का सांथ लेकर आरंभ कर दिया गया है और अनर्गल तर्क कुतर्क करके अपने विस्तारवादी सोच को सही ठहराया जा रहा है। टाटामारी वनक्षेत्र है जंहा पर वन विभाग के अनुमति के कोई भी गैरवानिकी कार्य निर्मांण या अतिक्रमंण किया ही नहीं जा सकता फिर भी धार्मिक आस्था का सम्मान करते तत्तकालीन वन कर्मचारियों अधिकारियों ने देवी स्थल पर मंदिर निर्माण ज्योति कलश भवन निर्माण करने पर नियम कानून का रोडा लगाकर रोक नहीं लगाया और पूजापाठ के लायक निर्मांण कार्य हो गया । जिस पर आज भी वन विभाग का कोई भी कर्मचारी अधिकारी कोई अड़ंगेबाजी नहीं कर रहा है। परन्तु मुख्य पूजा स्थल के अलावा दूर दूर तक देवी देवता के नाम पर क्षेत्र विस्तार करते बहुत बड़े भू भाग को आरक्षित कर लेने की आपत्तिजनक अघोषित कोशिश पर वन विभाग के कर्मचारियों अधिकारियों द्वारा आपत्ति करने पर धार्मिक आस्था को आघात् करने का नाम लेकर बखेड़ा खड़ा किया जाने लगा। वंही नाना प्रकार का आरोप प्रत्यारोप का दौर चालू हो गया। बड़ी विडंबना जनक हालात उत्पन्न करते इसमें राजनीतिज्ञों को भी ला खड़ा करने की कोशिश किया जा रहा है। जबकि टाटामारी से सटे ग्राम- सुरडोंगर के स्थानिय ग्राम प्रमुखों एवं देवी देवताओं से जुड़े लोगों का और केशकाल के प्रबुद्जनों का भी यही कहना है कि टाटामारी में ज़हां पर मां लक्ष्मी का जो स्थल है वंहा आरंभ पूजा पाठ पर किसी तरह का रोक टोक या पाबंदी नहीं होना चाहिए परन्तु देवी देवता के नाम या आड में क्षेत्र विस्तार कर टाटामारी के वनभूमि में आकोपाई किया जाना भी उचित नहीं है। नियत जगह में पूजा पाठ होना चाहिए और अनावश्यक विवाद उत्पन्न करने से बचना चाहिए।टाटामारी को ईको पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाना है जंहा वन्यप्रांणियों का आना जाना लगा रहता है।जहां पर स्थाई तौर पर अधिक लोगों का रूकना /रहना ,आग जलाना , कुत्ता पालना सही नहीं होगा यह हालात यंहा पर रहवास बनाने वाले एवं आने-जाने वाले वन्यप्राणिंयों के अनुकूल नहीं होगा। वन विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों को अपने वन विभाग के नियम कानून के अनुसार कदम उठाते टाटामारी क्षेत्र को सुरक्षित रखते वंहा के विकाश एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण का कार्य कराना है वंही धार्मिक आस्था का भी सम्मान रखना है । जिसका ख्याल रखते हुए आस्थावान श्रद्धालु भक्तों को एवं उनके अगुवाई करने वाले पुजारी व प्रमुख को भी सामंजस्य स्थापित करना चाहिए। धर्म और पर्यटन एक दूसरे के पूरक हैं ।ज़हां धार्मिक आस्था की जगह हो और वंहा की प्राकृतिक सौंदर्यता भौगोलिक विशिष्ठता आकर्षक वह स्थान बहुत जल्दी ही बहुत कम प्रयास से बहुत प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है। टाटामारी का यह संयोग और सौभाग्य है कि इसे मां लक्ष्मी के आस्था का संबल प्राप्त है तो वंही प्रकृति के द्वारा प्रदत्त भौगौलिक विशिष्ठता व प्राकृतिक सौंदर्यता नैसर्गिक छटा का मिला अनुपम उपहार है जो श्रद्धालु भक्तों एवं प्रकृतिप्रेमियों को आमंत्रित आकर्षित करता है।
टाटामारी में मां लक्ष्मी शक्तिपीठ होने की जानकारी स्थानिय बुजुर्गों को एवं यंहा के ग्राम प्रमुखों सिरहा गुनिया पुजारियों को नहीं हो पायी थी। यंहा पर खंण्ड शिक्षा कार्यालय में बाबू के तौर पर पदस्थ होने वाले श्री ठाकुर बाबू को अचानक इसका बोध हुआ और उसके बाद से ही टाटामारी में लक्ष्मी मां का शक्तिपीठ होने की जानकारी प्रचारीत हुआ ।टाटामारी की ही भांति और कयी स्थानों पर देवी देवता स्थल होने का खोज व शोध करने वाले महान भक्त एवं विद्वान पुजारी श्री ठाकुर बाबू ने ही टाटामारी में लक्ष्मी माता का वास होने का खोज किया। जिसके बाद वंहा पर पूजा पाठ एवं विभिन्न आयोजन शुरू हो गया। मां लक्ष्मी का शक्तिपीठ होने की जानकारी के पूर्व टाटामारी निर्जन वन क्षेत्र था जंहा जाना आना बहुत मुश्किल भरा होता था आसपास के लोग कभी कभार कुर्रू मोकय्या तेंदू खाने के चक्कर में जाते थे। श्री ठाकुर बाबू के द्वारा लक्ष्मी माता के नाम और स्थान के चमत्कार के नाम से जो यश किर्ति फैलाया गया उसके चलते लोगों का आवाजाही बढ़ने लगा और पूजा पाठ का सिलसिला शुरू हो गया जो समय काल के साथ बढ़ते गया। अपने भौगौलिक विशिष्ठता एवं प्राकृतिक सौंदर्यता के चलते पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित होने के संभावना से परिपूर्ण टाटामारी को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने का सुझाव सर्व प्रथम तत्कालीन उत्तर बस्तर वनमंण्लाधिकारी श्री नंदी के समय तत्काललीन जनपद सदस्य कृष्णदत्त उपाध्याय और जनपद उपाध्यक्ष रहे सगीर अहमद कुरैशी के द्वारा रखते हुए उन्हें टाटामारी ले जाकर दिखाया गया था।परन्तु उस वक्त नंदी साहब ने उनके सुझाव /प्रस्ताव को गंभीरता से नहीं लिया था। जिसके बाद भी लिखा-पढ़ी कर टाटामारी को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने की मांग जारी रहा और अंततः प्रयास फलीभूत हुआ श्री कटकवार वनमंण्लाधिकारी बनकर आये और उन्हें टाटामारी को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने की मांग के परिपेक्ष्य में प्रस्ताव मांगा गया जिसके बाद श्री कटकवार ने टाटामारी जाकर वंहा अवलोकन किया और प्रस्ताव भेजा जिसके बाद टाटामारी के विकास का श्रीगंणेश वन विभाग द्वारा आरंभ किया गया था। इस बीच आस्था से श्रदधानत् भक्तों ने टाटामारी पंहुच मार्ग को आने जाने बनाने में अपना योगदान दिया जिसे भुलाया नहीं जा सकता। धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्यता ने टाटामारी के विकास एवं ख्याति में अहं योगदान दिया। धीरे धीरी टाटामारी बस्तर संभाग के सुंदर आकर्षक पर्यटन स्थलों की सूची में खास स्थान अर्जित कर लिया। टाटामारी में पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं हैं। पैराग्लाइडिंग -पैरासर्फिंग- ऐडवांचर गेमर्स आरंभ करते ट्रेकिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है वंही वन्य प्राणियों -पक्षियों की शरंण व संरक्षण स्थली बनाते पर्यटन चेतना केंद्र-प्रशिक्षंण केंद्र के तौर पर भी विकसित जा सकता है। जिस दिशा में प्रयास जारी भी है ।जो देर सबेर होना ही है। जिसके लिए टाटामारी क्षेत्र को सुरक्षित रखना भी निहायत जरूरी हो गया है। परन्तु पिछले कुछ दिनों से धार्मिक आस्था के नाम पर अनावश्यक बखेड़ा खड़ा करने का काम केशकाल क्षेत्र के बाहर के बाहरी लोगों का सांथ लेकर आरंभ कर दिया गया है और अनर्गल तर्क कुतर्क करके अपने विस्तारवादी सोच को सही ठहराया जा रहा है। टाटामारी वनक्षेत्र है जंहा पर वन विभाग के अनुमति के कोई भी गैरवानिकी कार्य निर्मांण या अतिक्रमंण किया ही नहीं जा सकता फिर भी धार्मिक आस्था का सम्मान करते तत्तकालीन वन कर्मचारियों अधिकारियों ने देवी स्थल पर मंदिर निर्माण ज्योति कलश भवन निर्माण करने पर नियम कानून का रोडा लगाकर रोक नहीं लगाया और पूजापाठ के लायक निर्मांण कार्य हो गया । जिस पर आज भी वन विभाग का कोई भी कर्मचारी अधिकारी कोई अड़ंगेबाजी नहीं कर रहा है। परन्तु मुख्य पूजा स्थल के अलावा दूर दूर तक देवी देवता के नाम पर क्षेत्र विस्तार करते बहुत बड़े भू भाग को आरक्षित कर लेने की आपत्तिजनक अघोषित कोशिश पर वन विभाग के कर्मचारियों अधिकारियों द्वारा आपत्ति करने पर धार्मिक आस्था को आघात् करने का नाम लेकर बखेड़ा खड़ा किया जाने लगा। वंही नाना प्रकार का आरोप प्रत्यारोप का दौर चालू हो गया। बड़ी विडंबना जनक हालात उत्पन्न करते इसमें राजनीतिज्ञों को भी ला खड़ा करने की कोशिश किया जा रहा है। जबकि टाटामारी से सटे ग्राम- सुरडोंगर के स्थानिय ग्राम प्रमुखों एवं देवी देवताओं से जुड़े लोगों का और केशकाल के प्रबुद्जनों का भी यही कहना है कि टाटामारी में ज़हां पर मां लक्ष्मी का जो स्थल है वंहा आरंभ पूजा पाठ पर किसी तरह का रोक टोक या पाबंदी नहीं होना चाहिए परन्तु देवी देवता के नाम या आड में क्षेत्र विस्तार कर टाटामारी के वनभूमि में आकोपाई किया जाना भी उचित नहीं है। नियत जगह में पूजा पाठ होना चाहिए और अनावश्यक विवाद उत्पन्न करने से बचना चाहिए।टाटामारी को ईको पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाना है जंहा वन्यप्रांणियों का आना जाना लगा रहता है।जहां पर स्थाई तौर पर अधिक लोगों का रूकना /रहना ,आग जलाना , कुत्ता पालना सही नहीं होगा यह हालात यंहा पर रहवास बनाने वाले एवं आने-जाने वाले वन्यप्राणिंयों के अनुकूल नहीं होगा। वन विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों को अपने वन विभाग के नियम कानून के अनुसार कदम उठाते टाटामारी क्षेत्र को सुरक्षित रखते वंहा के विकाश एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण का कार्य कराना है वंही धार्मिक आस्था का भी सम्मान रखना है । जिसका ख्याल रखते हुए आस्थावान श्रद्धालु भक्तों को एवं उनके अगुवाई करने वाले पुजारी व प्रमुख को भी सामंजस्य स्थापित करना चाहिए। धर्म और पर्यटन एक दूसरे के पूरक हैं ।ज़हां धार्मिक आस्था की जगह हो और वंहा की प्राकृतिक सौंदर्यता भौगोलिक विशिष्ठता आकर्षक वह स्थान बहुत जल्दी ही बहुत कम प्रयास से बहुत प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है। टाटामारी का यह संयोग और सौभाग्य है कि इसे मां लक्ष्मी के आस्था का संबल प्राप्त है तो वंही प्रकृति के द्वारा प्रदत्त भौगौलिक विशिष्ठता व प्राकृतिक सौंदर्यता नैसर्गिक छटा का मिला अनुपम उपहार है जो श्रद्धालु भक्तों एवं प्रकृतिप्रेमियों को आमंत्रित आकर्षित करता है।
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